Bharatiya Sanskriti Shiromani Sri Rao Vijay Prakash Singh Ji
Well- known journalist, devoted educationist, keen observer and poet Dr Vinod Kumar expresses, in this poem, his observations about Sri Rao V.P. Singhji. He writes that due to his love for and adherence to the high human values, Sri Rao is a ‘ Manav Shiromani’. He further writes that because of the high class literature produced by Sri Rao V.P.S, he is ‘Sahitya Shiromani. For the high quality services rendered by him to the society, Sri Rao is a ‘Samaj-sevi Shiromani’. And if viewed, from different directions, Sri Rao’s valuable contributions in various fields of Indian culture, the overall observations about his multidimensional personality can be summed up by saying that Sri Rao Vijay Prakash Singhji is ‘Bharatiya Sanskriti Shiromani’.
शिरोमणि
धरती पर पुण्य आत्माएं लेती है जन्म,
तभी तो महान लोग करते हैं पुण्य कर्म,
पथभ्रष्ट हुए लोगों को दिखाते मार्ग,
ज्ञान की मिसाल लिए चलाते सन्मार्ग,
डूबतों का बन जाते हैं सहारा,
लगाते गले जो फिरता मारा मारा,
ज्ञान के हैं वे बहुत धनी,
श्रीराव जी हैं मानव शिरोमणि।
पुस्तक रूप में दिखा रहे सबको प्रकाश,
तभी तो ख्याति छू रही आकाश,
रखते सभी के प्रति नम्रता का भाव,
तभी तो मिलनसार भाता सबको स्वभाव,
चिंतन धारा से निकलते शब्द तुल्य मोती,
हृदय में विराज है दीप्तिमान ज्योति,
मानवता है एकसूत्र में पिरोनी,
श्रीराव जी हैं साहित्य शिरोमणि।
महापुरुषों में नहीं होता अहंकार,
तभी तो दिखते हैं कइयों को संस्कार,
सबके सुख के लिए कामना,
गिर रहे लोगों का हाथ थामना,
करते जीवन भर साधना,
करते हैं समाज में आडम्बरों का सामना
मिटा देते हैं भले हो अंधेरी रात घनी,
श्रीराव जी हैं समाजसेवी शिरोमणि।
भारतीय संस्कृति का करते प्रचार प्रसार,
पढ़ाते विश्व को शांति का सार,
बहती है ज्ञान पटल पर चिंतन धारा,
बन जाते हैं दीन दुखियों का सहारा,
भौतिकता की चकाचौंध को देते छोड़,
लेते हैं प्रकर्षता की ओर मुख मोड़,
प्रतिभा से भरपूर हैं बहुगुणी
श्रीराव विप्र सिंहजी हैं संस्कृति शिरोमणि।
डॉ विनोद कुमार शर्मा,
चंडीगढ़।