Sri V.P. Singh Rao’s examplary book “Sanskritik Evam Aitihasik Paripreksh Men Charkhi Dadri” on Cultural and Historical Perspective

Sri V.P. Singh Rao has written the book “Sanskritik Evam Aitihasik Paripreksh Men Charkhi Dadri” (Charkhi Dadri in Cultural and Historical Perspective).

 

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Courtesy: India News Calling
Sri V.P. Singh Rao has written the book “Sanskritik Evam Aitihasik Paripreksh Men Charkhi Dadri” (Charkhi Dadri in Cultural and Historical Perspective).

In the evolutionary process of development, analytical study of history and culture is extremely essential. We learn a lot from the events of the past. Analysis of the past actions leads us to act correctly in the present and plan properly for future advancement. Keeping this fact in view, author Sri V.P. Singh Rao has written the book “Sanskritik Evam Aitihasik Paripreksh Men Charkhi Dadri” (Charkhi Dadri in Cultural and Historical Perspective).

This is one of the best books available on history and culture of a place. The author has dived deep into the basic concepts of ‘Sanskriti’ (Culture) and ‘Itihaas’ (history) in the Indian context and has explained the relation between the two.

The history of Charkhi Dadri has been examined and reviewed from very early stages upto the present times, when it was declared as 22nd district of Haryana. Similarly, development of the people of this region in various fields of culture has been discussed and evaluated for benefit of the readers.

This valuable work is an excellent step towards educating the present and future generations through events of the past and inspiring them for future development. More than eighty points of views have been discussed with more than sixty illustrations many of which are vintage pictures. The whole exercise presents an example of how history can be made interesting and useful for the readers.

Saturated with extensive research coupled with heritage valuables, this book is of academic as well as general interest. This is one of the best books authored by Sri V.P.S. Rao, the renowned spirituo-cultural luminary, who has been devoting himself to the cause of preservation and propagation of the unique culture of India for the last more than half a century and has been writing extensively on related issues in English, Hindi and Panjabi. Such books should be taught in educational institutions as a part of their curriculum and also made available in public libraries. It has been published by the Haryana Granth Academy. It can be purchased from the Academy Bhawan, P-16, Sector-14, Panchkula-134113

संस्कृति एवं इतिहास पर श्रीराव वि. प्र. सिंह की श्रेष्ठ पुस्तक: डॉ. विनोद कुमार शर्मा

CHANDIGARH,01.02.20-श्री वि. प्र. सिंह राव की श्रेष्ठतम पुस्तकों में से एक है।यूं तो भारतवर्ष के नगरों पर अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, किंतु इतनी व्यापक ज्ञान से परिपूर्ण जिसे अन्य लेखक की पुस्तक देखने में नहीं आई है। इस पुस्तक में संस्कृति और इतिहास की, भारतीय परिप्रेक्ष्य में, मूल परिभाषा समझाते हुए एक क्षेत्र का अनेक दृष्टिकोणों से बड़ी गहनता के साथ सर्वेक्षण तथा प्रेक्षण किया गया है।

इस पुस्तक के लेखक श्रीराव का कहना है कि विकास हेतु अग्रसर व्यक्तियों के लिए इतिहास का समुचित अध्ययन बड़ा उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इसी प्रकार, भारतीय संस्कृति का ज्ञान एवं अनुकरण भी जिज्ञासुओं के सर्वतोमुखी विकास में सहायक साबित होता है।

श्रीराव विजय प्रकाश सिंह ने कहा है कि ‘नगरों से प्रांत, प्रांतों से देश और देशों से विश्व बनता है। इसलिए, विभिन्न नगरों के इतिहास का सृजन करना आवश्यक है। जिनके अध्ययन ना केवल इनके प्रति जानकारी ही मिलती है, अपितु देश के विभिन्न भागों से तुलनात्मक अध्ययन हेतू भी आवश्यक वृद्धि होती है।

इन्हीं तथा इसी कोटि के अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के दृष्टिगत श्रीराव ने “सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में चरखी दादरी” नामक इस बहुमूल्य पुस्तक की रचना की है। इसमें, इन्होंने इस क्षेत्र के इतिहास का आदिकाल से लेकर चरखी दादरी के वर्तमान हरियाणा प्रांत का 22 वां ज़िला घोषित किए जाने तक के विशाल कालखंड के इतिहास का वर्णन करते हुए, पूर्वकाल की घटनाओं के माध्यम से वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों को शिक्षा प्रदान की है। साथ में इस क्षेत्र के निवासियों के द्वारा किए गए विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक विकास के माध्यम से पाठकों को प्रेरित किया है। लगभग 80 दृष्टिकोणों से, 66 दृष्टांत चित्रों सहित, प्रेक्षण करके एक उद्धारण प्रस्तुत किया है।

गहन शोध तथा अमूल्य धरोहरों के चित्रों से संपन्न उत्तम कृतित्व सामान्य तथा विद्वत समाज के सभी वर्गों के लिए एक अमूल्य निधि है। सभी के लिए हितकारी जानकारी का प्रसार करती हुई यह पुस्तक राष्ट्रहित में एक महत्वपूर्ण कदम है।

ये तथा इस प्रकार की अन्य विशेषताओं के कारण, यह श्रीराव विजय प्रकाश सिंह, जो भारतीय संस्कृति के संरक्षण, विकास तथा प्रसार हेतू लगभग अर्द्ध शताब्दी से समर्पित भाग से संलगन हैं, के अनेक लोकोपियोगी कृतित्वों की श्रृंखला में, एक विशिष्ट कृति है।

इस प्रकार की उच्चकोटि की ज्ञानवर्धक पुस्तकों को शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाया चाहिए तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों में भी उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
इस पुस्तक को हरियाणा ग्रंथ अकादमी ने प्रकाशित किया है।

 

Courtesy: Samachar Digital News
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Courtesy: World Wisdom News
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जनपद चरखी दादरी की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर की तस्वीर

चित्र में दिखाई दे रहे हैं (बाएं से दाएं) डॉ. अशोक कुमार मंगलेश, श्रीराव विजय प्रकाश सिंहजी, डॉ. इंद्रा रानी राव और डॉ. सविता शर्मा।

Critic and analyst Dr.Ashok Kumar ‘Manglesh’ observes that the book “Sanskritik Evam Aitihasik Paripreksh men Charkhi Dadri” (Charkhi Dadri in historical and cultural perspective) written by eminent scholar and cultural luminary Sri V .P. Singh Rao and published by the Haryana Granth Academy, Panchkula, is a very important, authoritative and useful work, a praiseworthy contribution and undoubtedly worth preserving as a national historical heritage.

भारतीय संस्कृति तथा इतिहास के संरक्षण, विकास एवं प्रचार-प्रसार में सलंग्न, संस्कृति बोध संघके संस्थापक, (वेबसाइट: www.sanskritibodh.com), हिंदी, अंग्रेजी़ और पंजाबी भाषाओं के मर्मज्ञ विद्वान, संस्कृति शिरोमणि श्रीराव विजय प्रकाश सिंहजी द्वारा विरचित “सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में चरखी दादरी” जनपद चरखी दादरी के प्राचीन इतिहास एवं सांस्कृतिक मूल्यों की एक अत्यंत महत्वपूर्ण, उपयोगी एवं खोजपूर्ण पुस्तक है।

वर्तमान नगर चरखी दादरी प्राचीनकाल में भरतों के साम्राज्य का अंग था। दादरी शब्द संस्कृत भाषा के ‘दुर्दुर’ शब्द का (दुर्दुर -दादुर -दादरी) बदला हुआ रूप है, जिसका शाब्दिक अर्थ है – मेंढक। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् जब नकुल दिग्विजय के लिए निकला था तो वह इधर से ही होकर गया था। प्राचीनकाल से ही दादरी का क्षेत्र ऋषि-मुनि, साधु-संत, महात्माओं तथा विद्वानों की कर्म स्थली एवं निवास स्थान रहा है। वस्तुतः वैदिक काल से ही मनुष्य नदियों, जलाशयों तथा पहाड़ों आदि के समीप छोटे-बड़े जनसमूहों, बस्तियों, गांवों तथा नगरों में वास करता आया है, जिन्हें ‘पुरियां’ अथवा ‘पुर’ भी कहते थे। इन समूहों अथवा बस्तियों में से कुछ खुली और कुछ सुरक्षा की दृष्टि से ‘बंधों’ अथवा दीवारों से घिरी होती थी। दादरी भी इसी प्रकार के बांध से घिरा हुआ था, जो निकट से बहने वाले स्रोत में आजाने वाली बाढ़ से होने वाली संभावित हानि से बचाता था। इसे ‘दोहान’ अथवा ‘वधुसार’ भी कहा जाता था। प्राचीन समय में दादरी के समीप ही एक बड़ी झील भी हुआ करती थी, जिसके निकट ऋषि- मुनि, साधु- संत, महात्मा आदि अपने शिष्यों सहित निवास करते थे और इस झील में मंडूकों की संख्या कुछ अधिक ही थी। मानो मांडूक्योपनिषद् का उपदेश सर्वप्रथम यहीं पर हुआ हो। इसके साथ से गुज़रती अरावली पर्वत श्रृंखला भी इसके बसाव की महती कड़ी है।

हिंदी में इतिहास प्रायः कम ही लिखा गया है। हालांकि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, किंतु फिर भी जन- संघर्ष, जन- आंदोलन, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक प्रसंग, साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक साधन तथा घटनाओं की जानकारी अभी भी अधूरी है। इसलिये इतिहासवेत्ता या फिर अन्य विद्वान जब तक प्रांत या जनपद को अपने अध्ययन की इकाई मानकर इस दिशा में सूक्ष्म एवं गहन शोध कार्य नहीं करेंगे तब तक हम वास्तविक इतिहास की आत्मा को नहीं जान सकेंगे। सन 1966 में हरियाणा प्रांत के अलग बन जाने के बाद हरियाणा के इतिहास, सभ्यता- संस्कृति तथा पुरातात्विक स्तर पर कतिपय ग्रंथ उपलब्ध जरूर होते हैं परंतु हरियाणा के जिलों तथा स्वतंत्रता से पूर्व की रियासतों पर नाम मात्र कार्य ही दृष्टव्य है।

ऐसे में ज़िले के इतिहास, संस्कृति, साहित्य, कला आदि पर प्रकाश डालना तथा इसका गहन विश्लेषण प्रस्तुत कर पाना एक दुरूह कार्य है। यह कार्य तब और भी अधिक कठिन हो जाता है जब पुरातात्विक तथा साहित्यिक साधक, विचारक एवं चिंतक आदि विरले ही हों।

ऐसी स्थिति में “सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में चरखी दादरी” नामक यह पुस्तक विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाती है। लेखक श्रीराव के इस विषय पर लेख तथा वक्तव्य तो सन 1971 से अनेक प्रकाशनों में प्रकाशित होते रहे हैं, किंतु चरखी दादरी के हरियाणा प्रांत का 22 वां जिला घोषित होने पर, इस क्षेत्र पर स्वतंत्र पुस्तक के रूप में लेखन तथा प्रकाशन एक महत कार्य है। इसमें जनपद चरखी दादरी के इतिहास को ही नहीं अपितु तत्कालीन सामाजिक- सांस्कृतिक, आर्थिक- धार्मिक तथा साहित्यिक एवं कलात्मक प्रवृत्तियों तथा कृत्यों को भी समाहित किया हुआ है। लेखक ने पुस्तक में 80 से अधिक विषयों को 9 अध्यायों में विभक्त करके, 66 दृष्टांत चित्रों सहित विस्तारपूर्वक विवेचित किया है, जो अपने आप में एक दुरूह एवं अनुपम कार्य है। इस पुस्तक में जनपद चरखी दादरी क्षेत्र के अतिरिक्त हरियाणा प्रान्त में समय-समय पर हुए सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक उठापटक तथा विकास के विविध पक्षों की भी समुचित जानकारी दी है जो पुस्तक को ऐतिहासिक स्तर पर समाजोपयोगी बनाती है।

बहुर्मुखी प्रतिभा के धनी श्रीराव वि.प्र. सिंह भारतीय संस्कृति तथा इतिहास व सांस्कृतिक चेतना जागृति में महती भूमिका निभा रहे हैं। प्रकृत कृति इसका सजीव प्रमाण है। श्रीराव के पूर्वजों का भी प्राचीन दादरी के विकास एवं उत्थान में अग्रणी योगदान रहा है। इनके पिता श्रीराव उत्तमसिंहजी ने भारतीय गणराज्य में सयुंक्त पंजाब के राजकीय संग्रहालय में संस्कृति, धर्म, दर्शन, इतिहास, कला तथा साहित्य से संबंधित मूल पुरावस्तुओं, जैसे- दुर्लभ मुद्राओं, हस्तलिखित ग्रंथों, अप्राप्य पुस्तकों, विभिन्न शैलियों के उत्कृष्ट नमूनों, पुरातत्वों आदि को साहित्यकारों, विद्वानों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों तथा सामान्य जनों के हितार्थ सुरक्षित करके जो महत्वपूर्ण योगदान दिया है, वह गौरवपूर्ण कार्य है। सन 1969 में श्रीराव उत्तमसिंहजी द्वारा प्रकाशित “क्वाइन्ज़ ऑफ इंडिया” नामक मुद्राशास्त्र पर पुस्तक कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है। इनके बहुआयामी आदर्श जीवन से संबंधित तथ्यों को प्रस्तुत करता हुआ आशुकवि कर्मसिंह ‘दरदी’ द्वारा रचित महाकाव्य “बोध के रईस” इनकी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाने वाला हिंदी साहित्य जगत का एक विशिष्ट कीर्तिमान है।

प्रस्तुत पुस्तक ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य की दृष्टि सेे एक अत्यंत महत्वपूर्ण और जि़ला चरखी दादरी के इतिहास पर एकमात्र पुस्तक है। कृति दादरी इतिहास के परिप्रेक्ष्य में प्रशासनिक बदलाव, सांस्कृतिक- साहित्यिक अभिव्यक्ति, सुलेख-लेखन, चित्रबंध काव्य, चित्रकला तथा अन्य समाजोपयोगी कलाओं, शिक्षा- साहित्य तथा स्वाधीनता आंदोलन में स्थानीय भागीदारी, घटनाएं आदि-आदि सभी विषयों एवं प्रसंगों का संतुलित एवं विस्तृत वर्णन है। भारतीय इतिहास एवं संस्कृति संरक्षण में दादरी के कई महानुभावों ने तत्कालीन जींद राज्य में ही नहीं, अपितु दूर-दराज तक व्यापक रूप से मानव समाज को लाभान्वित किया है। सन 1854 में दादरी में जन्मे महाकवि शंभूदास की प्रतिभा का परचम आज भी प्रकाशमान है। जींद नरेश महाराजा रणबीर सिंह ने उन्हें राज कवि की उपाधि से सम्मानित किया था। इस महाकवि केेेे विषय में जींद नरेश के राजगुरु श्रीराव उत्तम सिंहजी की पुत्रवधू(श्रीराव विजय प्रकाश सिंहजी की धर्मपत्नी) डॉ. इन्द्रा रानी राव ने इनकी प्रेरणा से पीएचडी स्तरीय शोध करकेे अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों को उजागर किया। इनके “राजकवि शंभू एवं उनका काव्य”नामक शोध प्रबंंध को हरियाणाा साहित्य अकादमी ने सन 1986 में प्रकाशित किया। इनके प्रयत्नों केेेे परिणामस्वरूप इस कवि को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया। इसके अतिरिक्त इनकी देखरेख में डॉ विनोद कुमार शर्मा केे द्वारा ” शंभूदास के काव्य में अनुभूति एवं अभिव्यक्ति पक्ष” विषय पर भी पीएचडी स्तरीय शोध करवाया गया। श्रीमती राव के शोध के आधार पर शंभू दास को हिंदी साहित्य जगत में आचार्य कवि घोषित किया गया।

‌‌ कविराज शंभूदास का काव्य नीति, धर्म, दर्शन, संस्कृति, प्रकृति, सामाजिक, राजनीतिक, पारिवारिक विषयों से सम्पन्न तथा संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, हास्य -व्यंग, साख्य व भक्ति भाव, दीन तथा वैराग्य इत्यादि गुणों से समृद्ध है। महाकवि शंभूदास के समकालीन कवि गणेशी लाल, कवि मूलचंद, अम्बा सहाय, मदनलाल मस्त और इनके पूर्व के कवियों में पंडित सीताराम, मनोहर लाल , परमेश्वरी दास, रघुवीर दास, जेलदास तथा अन्य कविगण आदि प्रमुख हैं, जिन्होंने विभिन्न पुस्तकों के प्रकाशन में जनपद चरखी दादरी के क्षेत्र का ऐतिहासिक व सांस्कृतिक चित्रण प्रस्तुत किया है।

जनपद चरखी दादरी के साहित्यकारों ने गद्य-पद्य रूप में समय-समय पर ज्ञान विज्ञान संस्कृति और इतिहास के अनेक क्षेत्रों में लोकोपयोगी रचनाएं रचकर उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसके अतिरिक्त सुलेख लेखन और चित्रबंध काव्य प्रक्रिया तत्कालीन दादरी की एक अन्य अद्वितीय साधना की हस्तलिखित प्रतियां अस्तित्व में हैं जो यहां के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत को चरितार्थ करती हैं। अवध के नवाब आसिफ़ -उद्- दौला के दरबार में नामी लिपिक नूर अल्लाह का शिष्य निजाम अली कलियाणा (दादरी) द्वारा रचित क़िता (दोहा) की तारीफ दूर-दूर तक थी। क़िता इस प्रकार है – “सद हज़ारां सूरत अंदर कालिब – ए- हुस्न-औ- जलाल रेख़तन्द अम्मा ज़तो मत बूअतर कम रेख़तन्द।”

श्रीराव विजय प्रकाश सिंह द्वारा रचित यह पुस्तक लिखावट, सजावट तथा चित्र बंध काव्य आदि के नमूनों से भरपूर हैं, जिन्हें उच्च कोटि के व्यक्ति, सिद्धहस्त कलाकार तथा विद्वान ही उनके महत्व को समझ सकते हैं, जो एक बहुत बड़े अनुसंधान का विषय हैं। दादरी में इस प्रकार की अनेक कलाकृतियां महाकवि शंभूदास ने तैयार की थी, जिनमें धार्मिक, सामाजिक,सांस्कृतिक, राजसिक आदि अनेक विषयों पर अपने उल्लेखनीय चित्रबंध काव्य रूप में उकेरा है, जैसे- स्वस्तिमती चित्र, कदली वृक्षाकार चित्र, सर्वमुखी चित्र, सर्वोत्मुख चित्र, अष्टदल कमलाकार चित्र, दसदल कमलाकार चित्र, द्विविशंति कमलाकार बंध चित्र, हल की कुंड बंध चित्र, धनुष बंध, माला बंध, गुरज बंध, डमरु बंध, चंद्राकार, छत्राकार बंध, पर्वत बंध, मयूराकार चित्र, त्रिपदी बंध, कदम वृक्ष, चौसर बंध आदि आदि बंध चित्र हैं। इन नमूनों को प्रकृत पुस्तक और मूल कवि कृति “काव्यसिंधुतरणिकायाम” नामक काव्य पुस्तक में देखा और समझा जा सकता है। चरखी दादरी के ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत को यहां के लोगों ने एक अनोखे ढंग से सजाया हुआ था। जिसमें तत्कालीन साज -सज्जा, भित्ति चित्र, शीशे पर चित्र- चित्रण तथा भवन निर्माण कला की सुंदर झलकियाँ देखने को मिलती हैं। दादरी के रावपुरा मोहल्ले में श्रीराव परिवार की हवेलियों में पुष्प बेलों के अतिरिक्त देवी-देवताओं, सनातन सांस्कृतिक प्रतीकों, धार्मिक दृष्टांतों तथा राग-रागनियों से सुसज्जित चित्र दादरी की धरोहर को दर्शाते थे। 19वीं सदी में बना दादरी का दीवानखाना, सामेश्वर तालाब, जेन छतरियाँ आदि कला शैली के अनुपम नमूने हैं।

इन सब के अतिरिक्त लेखक श्रीराव विजय प्रकाश सिंह ने गायन- वादन, काष्ठ कला, चमड़े का सामान, तैराकी पतंग, तुक्कल तथा पशु- पक्षियों को सिधाने की कला, वेशभूषा, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला आदि सहित अनेक उल्लेखनीय प्रेरक तथ्यों का भी सविस्तार वर्णन कर जनपद चरखी दादरी के इतिहास को स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया हुआ है। साथ ही लेखक ने कृति के अंत में उचित दिशा -निर्देश देकर दादरीवासियों को सामाजिक-सांस्कृतिक विकास हेतु अध्यात्म, धरोहर संरक्षण, साहित्य, कला, गायन -वादन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, व्यवसायोन्मुखी आदि विभिन्न विषयों पर संचेतना एवं प्रेरणा का सुखद संदेश भी दिया है, जो विकासोन्मुखी, समाजोपयोगी एवं सुमार्ग गमन का संकेत देता है।

अतः वर्तमान काल में लेखक श्रीराव विजय प्रकाश सिंह द्वारा रचित व संपादित यह पुस्तक इतिहास और संस्कृति का दिग्दर्शन है। इसमें जनपद चरखी दादरी के इतिहास, संस्कृति, साहित्य,परम्परा, ऐतिहासिक भवन, तीर्थ- मंदिर आदि का सजीव वर्णन हुआ है। इससे पूर्व चरखी दादरी के पौराणिक व ऐतिहासिक-सांस्कृतिक स्थलों और धरोहरों पर लोगों का ध्यान कम ही गया था, किंतु यह पुस्तक इस कमी को अवश्य पूरा करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। पुस्तक मात्र जनपद चरखी दादरी ही नहीं, वरन पूरे हरियाणा की कला, संस्कृति और इतिहास में रुचि रखने वाले इतिहासवेत्ताओं, बुद्धिजीवियों, अनुसंधानकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है। वस्तुत: पुस्तक लेखक की साहित्य साधना, तपस्या, अपने पूर्वजों के संस्कार, अंत: प्रेरणा और रावऋषि राजगुरु श्रीराव उत्तम सिंह जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का प्रतिफल है। निश्चय ही यह पुस्तक राष्ट्रीय इतिहास में धरोहर रूप में दर्ज करने योग्य तथा सराहनीय एवं श्लाघनीय कृति है।

समीक्षक एवं चिंतक
डॉ अशोक कुमार ‘मंगलेश’
अध्यक्ष, निर्मल स्मृति साहित्यिक समिति, चरखी दादरी,हरियाणा।
मो न. 8199929206
ईमेल: dr.ashokkumarmanglesh@gmail.com

 

दादरी की आन, बान और शान के प्रतीक


हार्दिक बधाई डॉक्टर साहब ! राव साहब साहित्यिक क्षेत्र में दादरी की आन, बान और शान के प्रतीक हैं !

ज्योति स्वरूप


Very very nice ji. We are proud of the Rao Family.

Deepak Sharma

 


It must be a great exposure of the history , culture and heritage of Charkhi Dadri as it comes through the pen of Sri V.P.S. Rao son of Sri Rao Uttam Singhji, who was a legendary historian of the region. This book should certainly find place not only in the libraries of Haryana where it should be a part of the history text books, but all over India as a guide for regional history books. Congratulations for the great launching of the book and wish it a roaring success.

Prof. C. P. Sharma

 

Heritage of Glorious History of Charkhi Dadri, a district of Haryana, India

Dynamic and wide-awake writer and critic Dr. Sheel Kaushik has opined that the book, “Sanskritik Evam Aitihasik Paripekshya Men Charkhi Dadri” (Charkhi Dadri in Cultural and Historical Perspective) is a unique, remarkable and praiseworthy work of the famous author and multi sided personality Sri V. P. Singh Rao…. whose notable and important writings on related issues have been appearing in periodicals and news papers including the”Haryana Review”, “Haryana Samvaad”,”Harigandha”,”The Tribune”and the like…… Important and useful information about the cultural development and glorious history of Charkhi Dadri has been made available to the good luck of citizens…. Basic and important information useful for research scholars and inquisitive readers has been provided in this book…. The people of Dadri are fortunate enough to have such a high class writer and historian.

चरखी दादरी के गौरवमयी इतिहास की धरोहर

डॉ. शील कौशिक

मित्रों नगरों से प्रांत और प्रांतों से देश और देशों से विश्व बनता है। इसलिए किसी देश को संपूर्ण रूप से जानने के प्रयास हेतु विभिन्न नगरों के इतिहास व संस्कृति को जानना आवश्यक है। इससे न केवल उस क्षेत्र विशेष की जानकारी मिलेगी बल्कि अन्य क्षेत्रों के विभिन्न भागों के तुलनात्मक अध्ययन हेतु भी उपयोगी ज्ञान में वृद्धि होगी।
प्रस्तुत पुस्तक में हरियाणा के जिला चरखी दादरी का सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विस्तृत परिचय विशिष्ट दृष्टांतों, चित्रों सहित किया गया है। यह एक दुर्लभ एवं असाध्य कार्य है, जिसे लिखने का स्तुत्य प्रयास आदरणीय वीपी सिंह राव द्वारा किया गया है। सुविख्यात लेखक, बहुआयामी प्रतिभासंपन्न वीपी सिंह राव के इस संबंध में उल्लेखनीय एवं महत्त्वपूर्ण आलेख हरियाणा रिव्यू, हरियाणा संवाद, हरिगंधा, द ट्रिब्यून आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। यह दादरी नगर वासियों का सौभाग्य ही है कि दादरी की विकास यात्रा के विभिन्न आयामों के बारे में उन्हें सहज जानकारी उपलब्ध हुई है। उन्हें अपने नगर के गौरवपूर्ण इतिहास को जानना रुचिकर तो लगेगा ही तथा इसे पढ़कर उनका ज्ञान वर्धन भी होगा।
इस पुस्तक को विभिन्न अध्यायों में विभक्त किया गया है-
1. संस्कृति और इतिहास
2.ऐतिहासिक, प्रशासनिक परिवर्तनों में दादरी
3.सांस्कृतिक अभिव्यक्ति
4.साहित्यिक अभिव्यक्तियाँ
5. सुलेख-लेखन
6. विस्मयजनक चित्रबन्ध काव्य
7.चित्रकला
8.अतिरिक्त समाजोपयोगी कलाएं
9.अन्य उल्लेखनीय प्रेरक तथ्य
लेखक की दिली इच्छा है की दादरी नगर में वार्षिक आयोजन हो, ताकि नागरिकों के व्यक्तिगत तथा सामाजिक विकास हेतु अध्यात्म, धरोहर-संरक्षण, साहित्य, गायन-वादन, स्वास्थ्य, पर्यावरण, व्यवसायोन्मुखी विषयों तथा अन्य उपयोगी क्षेत्रों से संबंधित प्रदर्शनियों, प्रतियोगिताओं तथा कार्यक्रमों आदि के माध्यम से संचेतना एवं प्रेरणा का संचार होता रहे, जिससे विकासोन्मुखी सुमार्ग गमन अवश्यंभावी हो।
जिज्ञासु एवं शोधार्थियों के लिए यह पुस्तक मौलिक एवं महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएगी। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की यह पुस्तक विशिष्ट क्षेत्र में चर्चित एवं प्रशंसित होगी। यह दादरी का सौभाग्य है कि आप जैसे इतिहास अध्येता के रूप में उन्हें उत्कृष्ट लेखक उपलब्ध है। आपको इस महत्वपूर्ण एवं उपादेय कृति के प्रणयन के लिए साधुवाद।

डॉ. शील कौशिक

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